विजय माल्या से कैसे अलग है नीरव मोदी का केस, आसान नहीं जमानत

पंजाब नेशनल बैंक घोटाले का सबसे बड़ा आरोपी नीरव मोदी आखिरकार लंदन में गिरफ्तार हो ही गया है. नीरव मोदी के ऊपर पीएनबी के 13 हजार करोड़ रुपये उड़ाने का आरोप है, करीब 13 महीने पहले इस घोटाले का खुलासा हुआ था तभी से इसकी तलाश जारी थी. बता दें कि इससे पहले भी दूसरा भगोड़े विजय माल्या को लंदन में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसे ज़मानत मिल गई थी.

हालांकि, अगर विजय माल्या के मामले की नीरव मोदी के मामले से तुलना करते हैं तो उसमें काफी अंतर है. क्योंकि, विजय माल्या पर भारत में बैंकों के लोन को डिफॉल्ट घोषित कर लंदन भाग जाने का आरोप है. तभी से वह लंदन में शरण लिए हुए है, इसलिए भारत को विजय माल्या पर आरोप साबित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

लंदन की वेस्टमिंस्टर कोर्ट ने विजय माल्या को ज़मानत भी दे थी, भारत की एजेंसियां अभी तक माल्या को प्रत्यर्पित करने की प्रक्रिया में उलझी हुई हैं. वहीं अगर नीरव मोदी के मामले को देखें तो इस मामले में पैसों के गबन के साथ-साथ धोखाधड़ी करने का भी आरोप है.

नीरव के मामले में जब बातें खुलकर सामने आई थीं तो पता लगा था कि वह अपने ग्राहकों को अननैचुरल हीरे बेचता था, कई सेलिब्रेटिज़ को उसने अपने प्रोडक्ट का प्रचार करने में भी लगाया था. हालांकि, नियमों के तहत नीरव मोदी को सशर्त ज़मानत मिल सकती है लेकिन उसके कारनामों को देखकर लगता है ऐसा काफी मुश्किल है.

यहां जानें कैसे विजय माल्या के केस से अलग है नीरव मोदी का केस... .

नीरव पर आरोप - नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी ने विदेश में कर्ज लेने के लिए धोखे से गारंटी पत्र (एलओयू) हासिल करके पंजाब नेशनल बैंक को करीब 13000 करोड़ रुपए का चूना लगाया. इस दौरान इन दोनों ने कई फर्जी कंपनियों को बनाया, फर्जी डायरेक्टर को बनाया और बैंक के साथ धोखा किया.

विजय माल्या पर आरोप – बता दें कि शराब कारोबारी विजय माल्या बैंकों के 9,000 करोड़ रूपये के कर्ज की अदायगी नहीं करने के मामले का सामना कर रहा है. वह अपने खिलाफ CBI के लुकआउट नोटिस को कमजोर किए जाने का फायदा उठाते हुए मार्च 2016 में ब्रिटेन भाग गया था.

प्रोफेसर अलका आचार्य का कहना है कि भारत के लिए यह स्थिति नेहरू युग से भी बुरी होगी. क्योंकि चीन 14वें दलाई लामा को कितना भी भला-बुरा कहे लेकिन यह तो मानता ही है कि वही दलाई हैं. बौद्ध धर्म में दलाई लामा की भूमिका लगभग वैसी ही है जैसी हिंदू धर्म में शंकराचार्य की होती है. चीन में बौद्ध धर्म को मानने वालों की बड़ी आबादी रहती है. आज भी वहां के लोग आध्यात्मिक ज्ञान के लिए दलाई लामा की शरण में ही आते हैं.

तिब्बती बौद्ध धर्म के 14वें दलाई लामा को साल 1959 की शुरुआत में चीनी शासन के खिलाफ एक विद्रोह के बाद भारत में शरण लेनी पड़ी, और तब से ही दलाई लामा अपने दूरस्थ और पर्वतीय मातृभूमि में भाषाई और सांस्कृतिक स्वायत्तता के लिए वैश्विक समर्थन प्राप्त करने के लिए काम करते रहे हैं. बता दें कि 1950 में चीन ने तिब्बत को अपने नियंत्रण में ले लिया था और 14वें दलाई लामा को वह अलगाववादी मानता है.

बाहरहाल 14वें दलाई लामा के बारे में चीन कितना भी भला-बुरा कहे लेकिन तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु के तौर पर उनकी मान्यता को स्वीकार तो करता ही है. लेकिन 83 वर्षीय दलाई लामा के निधन के बाद चीन एक बार फिर बौद्ध आस्था के प्रतीक दलाई लामा के अवतार को अपने रणनीतिक फायदे को देखते हुए नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है. जिसकी आशंका खुद दलाई लामा ने जताई है. ऐसी परिस्थिति में भारत के सामने यह दुविधा होगी कि वो दलाई लामा की ओर से घोषित अवतार को माने या चीन की तरफ से घोषित दलाई लामा को.

Comments

Popular posts from this blog

"Будем отдыхать": как чувствуют себя российские туристы в Грузии?

弱冷空气将影响北方地区 华南等地仍有中到大雨

नए साल पर रेडियो को याद करता वुसअत का ब्लॉग