तब क्या होगा जब खाना ख़त्म हो जाएगा?

एक रात में ही सब कुछ घट गया था. कुछ ही वर्ष पहले शीतकालीन ओलम्पिक खेलों का आयोजन करने वाले एक आधुनिक फलते-फूलते शहर में रेसाद त्रबोंजा एक आम किशोर का जीवन जी रहा था.

5 अप्रैल 1992 को उसका घर कहा जाने वाला यह शहर बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट गया था.

बोस्निया की सर्ब सेना ने उसके साथ-साथ सरायेवो शहर के चार लाख अन्य बाशिंदों को भी चारों ओर से घर लिया था. लेकिन इन लोगों को तब यह मालूम नहीं था कि यह दुःस्वप्न लगभग चार वर्ष चलेगा. सरायेवो की इस घेराबंदी के बीच यहां के निवासी रोज़ होने वाली गोलाबारी में अपनी रोज़मर्रा की जिन्दगी जी रहे थे.

घेराबंदी करने वाले सैनिक शहर के आसपास की पहाड़ियों पर जमे हुए थे. इससे शहर के लोगों के लिए सड़क पार करना या खाने के लिए किसी कतार में लगना भी जानलेवा हो सकता था.

गोले और गोलियों का ख़तरा तो लगातार बना हुआ था लेकिन त्रबोंजा और उसके पड़ोसी एक और ख़तरे से घिरते जा रहे थे - वो थी भुखमरी.

उस समय 19 वर्ष के हो चुके त्रबोंजा अब बोस्निया में स्कूली बच्चों को युद्ध के बारे में पढ़ाते हैं.

उन दिनों की याद करके वो बताते हैं, "घेराबंदी के तुरंत बाद ही खाना ख़त्म होने लगा था. दुकानों में रखा खाद्य पदार्थ बहुत जल्दी ख़त्म हो गया था. कई दुकानें तो लूट ली गईं. परिवार बड़ा हो तो फ्रिज और अल्मारियों में रखे गये खाद्य पदार्थ भी बहुत जल्दी ही ख़त्म हो जाते हैं."

जनवरी 1996 में यह घेराबंदी समाप्त हुई. उस समय तक सरायेवो के साढ़े 11 हजार से अधिक निवासी मारे जा चुके थे. छर्रों, विस्फोटकों और गोलियों में मरने वाले कई लोगों के अलावा कुछ लोग निश्चित रूप से ठंड और भूख की वजह से मरे.

लेकिन त्रबोंजा बताते हैं कि मौत और लगातार होने वाले विनाश के बावजूद सरायेवो के लोगों ने असाधारण जुझारूपन दिखाया.

त्रबोंजा बताते हैं, "उपनगरीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपने-अपने बगीचों में उन दिनों सब्जियां उगाते थे और सबके साथ बांटकर खाते थे."

"वे लोग अपने पड़ोसियों को भी सब्जियों के बीज देते थे जिससे लोग अपनी बालकनी में फूलदान में सब्जियां उगा सकें. अपनी बालकनी में उगाए गए टमाटरों का स्वाद बहुत ही अच्छा होता है."

अंतरराष्ट्रीय समुदाय बोस्निया में लगातार बढ़ने वाले युद्ध में हस्तक्षेप को लेकर ऊहापोह में रहा, लेकिन कनाडा के सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के दल के रूप में काम करते हुए किसी तरह सरायेवो का हवाईअड्डा फिर से खोल दिया. यह एक बहुत अहम कदम था.

घेराबंदी के बीच ही संयुक्त राष्ट्र ने एक लाख 60 हजार टन भोजन, दवाओं और अन्य सामग्रियों को लाने वाली लगभग 12 हजार सहायता उड़ानें इस शहर में सम्पन्न कीं.

त्रबोंजा का मानना है, "यदि यह सहायता न मिलती तो शायद सरायेवो न बचता. शहर की 90 प्रतिशत आबादी संयुक्त राष्ट्र द्वारा वितरित भोजन पर ही जीवित थी. जो लोग बहुत सम्पन्न थे, वे गहनों, चित्रों या किसी भी बहुमूल्य वस्तु के बदले कालाबाज़ार से अतिरिक्त भोजन पा जाते थे."

लेकिन जिनके पास अदला-बदली के लिए कुछ भी न हो उन्हें रोज़ मिलने वाले जरा से भोजन को बढ़ाने के लिए अन्य तरीके अपनाने की जरूरत थी. अपने परिवार और घर को बचाने के लिए सरायेवो के कई अन्य युवा पुरुषों की तरह ही त्रबोंजा ने भी हताशा में बंदूक भी उठाई.

वे युद्ध से वापसी के समय शहर के अस्पताल में रक्तदान करते हुए घर आते थे. बदले में उन्हें गोमांस का एक कैन मिलता था.

वे बताते हैं, "हमें और भी तरीके ढूंढने पड़े. हम लोगों ने किताबों में ढूंढा कि किन पौधों को खाया जा सकता है जिससे फूलों से भी सलाद बना सकें. कभी-कभी तो केवल चाय और ब्रेड का एक टुकड़ा होता था और कभी पूरे दिन में कुछ नहीं मिलता था. सही मायनों में अस्तित्व की लड़ाई चल रही थी."

भुखमरी का भीषण दौर
त्रबोंजा से बातचीत करते हुए यह विश्वास करना मुश्किल होता है कि 30 वर्ष से भी कम समय पहले यह सब कुछ यूरोप के बीचोंबीच घटा. लेकिन उसकी इस कहानी जैसी अन्य कहानियां अभी इतिहास में दफन नहीं हुई हैं.

युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और सूखे के कारण द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से दुनिया पहली बार भुखमरी के सबसे भीषण दौर से गुजर रही है.

मानवीय आपातकाल की भविष्यवाणी करने वाले अमरीका के एक संगठन फैमाइन अर्ली वॉर्निंग सिस्टम के अनुसार वर्ष 2019 में 46 देशों के साढ़े आठ करोड़ लोगों को आपात खाद्य सहायता की आवश्यकता होगी.

यह संख्या ब्रिटेन, ग्रीस और पुर्तगाल की कुल आबादी के बराबर है. संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार लगभग 12 करोड़ 40 लाख लोग खाद्य संकट का सामना करते हैं.

वर्ष 2015 से भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में 80 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है. इसमें सबसे अधिक प्रभावित दक्षिणी सूडान, यमन, दक्षिण-पश्चिमी नाइजीरिया तथा अफ़गानिस्तान है.

जहां एक ओर 1980 के दशक में इथोपिया में भूख से बिलबिलाते बच्चों की तस्वीरों ने पश्चिमी जनमानस पर अमिट छाप छोड़ी थी, वहीं यह आधुनिक भुखमरी बिना पदचाप सुनाए बढ़ती जा रही है.

आंशिक रूप से इसकी वजह यह है कि दुनिया ने लगभग मान लिया है कि अब भुखमरी कहीं नहीं है. यह बात सच है कि भुखमरी के कारण होने वाली मौतों की संख्या कम हुई है.

मैसाचुसेट्स के बोस्टन स्थित टफ्ट्स विश्वविद्यालय के वर्ल्ड पीस फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक एलेक्स डी वॉल के अनुसार 1980 के दशक के पहले सौ सालों में भुखमरी के कारण हर वर्ष दस लाख लोग मारे जाते थे.

डी वॉल बताते हैं, "तब से मृत्यु की दर केवल पांच से दस प्रतिशत रह गई है. अब समूचा समाज भुखमरी का शिकार नहीं बनता. वैश्विक बाज़ारों, बेहतर बुनियादी ढांचों और मानवीय सहायता की व्यवस्थाओं ने भुखमरी को लगभग समाप्त कर दिया था, अब से कुछ वर्ष पहले तक."

लेकिन अगर भुखमरी एक बार फिर से ख़तरा बन कर उभर रही है- तो आखिर इसका कारण क्या है?

इसका कारण युद्ध और खराब राजनीति है.

डी वॉल का मानना है, "दरअसल लोगों को भूखा मारना बड़ा कठिन काम है क्योंकि लोग बहुत जुझारू होते हैं. लोगों को उनकी आवश्यकता से वंचित करना और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लागू की जाने वाली नीतियां एक बहुत खराब सरकार अपना सकती है."

"यही बात सीरिया, दक्षिणी सूडान और यमन जैसे देशों में फैली भुखमरी की जड़ में है."

भुखमरी पीड़ित देशों का सामान
हमारे आधुनिक विश्व की यह एक विडम्बना भी है. वैश्विक खाद्य आपूर्ति और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण हम अब कुछ ही दिनों में खाद्य पदार्थ महासागरों के पार ले जा सकते हैं. हमें सुपरमार्केट में दुनियाभर से आया सामान उपलब्ध है, अपने पड़ोसी देश से लेकर उन स्थानों तक से आया सामान जहां भुखमरी हो.

लेकिन विकसित देशों में भी खाने की कमी उतनी दूर नहीं है जितना हम विश्वास करना चाहेंगे. हमें हमारा पसंदीदा भोजन पहुंचाने वाली अन्तर्राष्ट्रीय खाद्य कंपनियां एक तरह से कगार पर खड़ी हैं.

इन व्यवस्थाओं को झकझोरने के लिए युद्ध या सूखे जैसी भीषण स्थिति की आवश्यकता नहीं है. तेल के भंडारों से सम्पन्न देश वेनेजुएला में उत्पन्न राजनीतिक संकट के कारण आसमान छूती महंगाई ने भोजन और दवाओं की कमी ला दी है.

अब परिवारों को सड़े हुए मांस पर गुज़ारा करना पड़ रहा है और इसकी वजह से लाखों लोगों ने देश ही छोड़ दिया है. यूरोज़ोन में उत्पन्न संकट से ग्रीस की अर्थव्यवस्था भी ढहने के कगार पर आ गई थी और खाद्य पदार्थ का संकट उत्पन्न हो गया था.

भोजन की उपलब्धता बड़ी समस्या
उधर, हाल के वर्षों में बहुत सारी आम फसलों में रोगों, खराब मौसम और बढ़ते हुए दाम के कारण कमी आई है. वर्ष 2008 में फिलीपींस और अन्य एशियाई देशों में खाद्य पदार्थों के बढ़ते हुए दाम की वजह से लोगों ने अफरातफरी में खरीदारी की जिससे मुख्य खाद्य पदार्थ की आपूर्ति में संकट उत्पन्न हो गया. वर्ष 2017 में यूरोप में ख़राब मौसम की वजह से कई सब्जियों के दाम में काफी उछाल आया जबकि कई देशों में ख़राब फसल की वजह से दुनियाभर में एवोकेडो नामक फल की कमी हो गई.

Comments

Popular posts from this blog

"Будем отдыхать": как чувствуют себя российские туристы в Грузии?

弱冷空气将影响北方地区 华南等地仍有中到大雨

नए साल पर रेडियो को याद करता वुसअत का ब्लॉग